श्री आद्यशङ्कराचार्य ज्योतिष्पीठ की शङ्कराचार्य परम्परा

1. श्री तोटकाचार्य 2500

4. श्री कुमाराचार्य

2. श्री विजयाचार्य

5. श्री गरुड़ाचार्य

3. श्री कृष्णाचार्य

6. श्री शुकाचार्य

7. श्री विन्ध्याचार्य

8. श्री विशालाचार्य

9. श्री बकुलाचार्य

10. श्री वामनाचार्य

11. श्री सुन्दराचार्य

12. श्री अरुणाचार्य

13. श्री निवासाचार्य

14. श्री आनन्दाचार्य (सुखानन्द)

15. श्रीविद्यानन्दाचार्य

16. श्री शिवाचार्य

17. श्री गिर्याचार्य

18. श्री विद्याधराचार्य

19. श्री गुणानन्दाचार्य

20. श्री नारायणाचार्य

21. श्री उमापत्याचार्य

उक्त 21 आचार्य चिरजीवी हैं और इनका प्रातः स्मरण करने से योग सिद्धि होती है, ऐसी मान्यता है।
 बद्रीनाथ क्षेत्र में इन आचायर्यों से सम्बन्धित निम्न श्लोक आज भी नित्य पढ़े जाते हैं –

तोटको विजयः कृष्णः कुमारो गरुडः शुकः ।  विन्ध्यो विशालो वकुलो वामनः सुन्दरोऽरुणः ।।

श्रीनिवासः सुखानन्दो विद्यानन्दः शिवो गिरिः ।  विद्याधरो गुणानन्दो नारायण उमापतिः ।।

एते ज्योतिर्मठाधीशाः आचार्याश्चिरजीविनः ।  य एतान् संस्मरेन्नित्यं योगसिद्धिं स विन्दति ।।

इन 21 चिरजीवी आचार्यों के पश्चात् विक्रम संवत् 1500 (ई. सन् 1443) से ज्योतिष्पीठ के शङ्कराचार्यों का क्रम निम्नानुसार प्राप्त होता है –

क्रम आचार्यविक्रम संवत्ई. सन्अवधि
22.  श्री बालकृष्ण स्वामी  1557-1557   1443-1500  57
23 .  श्री हरिब्रह्म स्वामी  1557-1558  1500-1501  01
24. श्री हरिस्मरण  1558-1566  1501-1509  08
25, श्री वृन्दावन स्वामी  1566-1568  1510-1511  02
26. श्री अनन्त नारायण  1568-1569  1511-1512  02
27.  श्री भवानन्द  1569-1583  1511-1526  14
28. श्री कृष्णानन्द सरस्वती  1583-1593  1526-1536  10
29.  श्री हरिनारायण  1593-1601  1536-1544  08
30. श्री ब्रह्मानन्द  1601-1621  1544-1564  20
31.  श्री देवानन्द  1621-1636  1564-1579 15
32. श्री रघुनाथ  1636-1661   1579-1604  25
33.  श्री पूर्णदेव  1661-1687  1604-1630  26
34. श्री कृष्णदेव  1687-1696  1630-1639  09
35. श्री शिवानन्द  1696-1703  1639-1646  07
36.  श्री बालकृष्ण  1703-1717  1646-1660  14
37. श्री नारायणउपेन्द्र  1717-1750  1660-1693 33
38. श्री हरिश्चन्द्र  1750-1763  1693-1706  13
39. श्री सदानन्द  1763-1773  1706-1716  10
40. श्री केशवानन्द  1773-1781  1716-1724  08
41. श्री नारायण तीर्थ  1781-1823  1724-1766 42
42.  श्री रामकृष्ण तीर्थ  1823-1833 1766-1776  10

(इसके बाद 165 वर्षों तक ज्योतिष्पीठ आचार्य से रिक्त रही किन्तु आचार्यों ने गुजरात के धौलका नामक स्थान से पीठ की परम्परा अविच्छिन्न रखी। सन् 1982 में पूज्य महाराजश्री का धौलकापीठ पर अभिषेक किया गया ।)

43.  श्री ब्रह्मानन्द सरस्वती 1998 2010 1941 – 1953  12
44.  श्री कृष्णबोधाश्रम 2010 2030 1953 – 1973  20
45.  श्री स्वरूपानन्द सरस्वती 2030वर्तमान 1973 से 2022

संवत् 1833 से 1998 तदनुसार ई. सन् 1776 तक के 165 वर्षों तक ज्योतिष्पीठ आचार्यों से विहीन रही, वहाँ आचार्य के न होने पर रावलों ने बदरीनाथ मन्दिर का दायित्त्व सम्भाला । ज्योतिष्पीठ की शङ्कराचार्य परम्परा भी एक प्रकार से अविच्छिन्न रही। इस पीठ के 42वें आचार्य श्री रामकृष्णानन्द जी के पश्चात् श्रीटोकरानन्द के समय अपरिहार्य कारणों से इस पीठ के उत्तरदायित्त्वों का निर्वहन आचार्यों ने गुजरात के अहमदाबाद के निकट धौलका नामक स्थान से किया । यह स्थान धौलकापीठ के नाम से जाना जाता है। धौलकापीठ से ज्योतिष्पीठ की शङ्कराचार्य परम्परा का निर्वहन करने वाले आचार्यों के नाम इस प्रकार हैं-

1. श्री टोकरानन्द

4. श्री विश्वेश्वरानन्द

7. श्री मधुसूदनानन्द

2. श्री पुरुषोत्तमानन्द

5. श्री अच्युतानन्द

3. श्री कैलाशानन्द

6. श्री राजराजेश्वरानन्द

8. श्री विजयानन्द (अद्वैतानन्द)

इसके पश्चात् पूज्य गुरुदेव का अभिषेक घोलका में संचालित ज्योतिष्पीठ की अवान्तर धारा के मठ पर भी कर दिया गया और पूज्य महाराजश्री इस तरह ज्योतिष्पीठाचार्य परम्परा को पुनः एकीकृत और समग्र बनाने वाले आचार्य हो गए। पूज्य महाराजश्री के संचालन में पीठ अपनी पुरातन प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर चुका है।